2027 की जनगणना में दो बड़े बदलाव डिजिटल गिनती और जातीय आंकड़े जानिए क्या क्या है खास

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भारत में पहली बार डिजिटल और जातिगत जनगणना: 96 साल बाद फिर खुलेंगे जाति के आंकड़े

भारत में जनगणना को लेकर एक ऐतिहासिक कदम उठाया गया है। 2027 में देश की पहली डिजिटल जनगणना की शुरुआत होने जा रही है, और इसके साथ ही 1931 के बाद पहली बार जातिगत आंकड़े भी सार्वजनिक किए जाएंगे। यह एक ऐतिहासिक अवसर है, जो भारत के सामाजिक ढांचे और प्रशासनिक नीतियों को एक नई दिशा देने की क्षमता रखता है।


जनगणना की शुरुआत और महत्व

भारत में जनगणना की शुरुआत वर्ष 1881 में हुई थी और तब से हर दस साल में यह प्रक्रिया दोहराई जाती रही है। पिछली जनगणना 2011 में हुई थी। कोविड महामारी के चलते 2021 की जनगणना नहीं हो पाई थी। अब 16 साल बाद जनगणना दोबारा हो रही है, लेकिन इस बार यह पहले से बहुत अधिक आधुनिक और विस्तृत होगी।


डिजिटल जनगणना: तकनीक से बदलेगी तस्वीर

जनगणना 2027 में भारत डिजिटल जनगणना का गवाह बनेगा। नागरिक अपने बारे में जानकारी ऑनलाइन स्वयं दर्ज कर सकेंगे। साथ ही, 30 लाख से अधिक गणनाकर्ता और पर्यवेक्षक इस कार्य में लगेंगे जिन्हें विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा।

मकानों की गिनती का चरण अप्रैल 2026 तक शुरू होने की संभावना है और इसके लिए केंद्र सरकार ने 13,000 करोड़ रुपये से अधिक का बजट प्रस्तावित किया है।


जनता से पूछे जाएंगे ये सवाल

इस जनगणना में नागरिकों से कई सामाजिक, आर्थिक और बुनियादी सुविधाओं से जुड़े सवाल पूछे जाएंगे:

  • घर में प्रयुक्त अनाज

  • पीने के पानी का स्रोत

  • रोशनी और शौचालय की उपलब्धता

  • ईंधन, रसोई और एलपीजी कनेक्शन

  • रेडियो, टीवी, फर्श, दीवार, छत की सामग्री

  • परिवार में महिला मुखिया की स्थिति आदि


जातिगत जनगणना: 96 साल बाद बड़ा कदम

1931 के बाद यह पहला मौका होगा जब भारत में जातिगत आंकड़े प्रकाशित किए जाएंगे। आज़ादी के बाद हर जनगणना में केवल अनुसूचित जाति और जनजातियों के आंकड़े ही सामने आते रहे हैं। लेकिन इस बार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के अनुसार, सभी जातियों की गिनती होगी और डेटा सार्वजनिक किया जाएगा।

यह कदम सामाजिक योजनाओं, आरक्षण नीतियों और संसाधनों के न्यायसंगत वितरण के लिए बेहद अहम माना जा रहा है।


दो चरणों में होगी जनगणना

जनगणना प्रक्रिया दो चरणों में होगी:

  • पहाड़ों और बर्फीले इलाकों जैसे जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, और उत्तराखंड में यह 1 अक्टूबर 2026 को शुरू होगी।

  • शेष देश में जनगणना 1 मार्च 2027 को आरंभ होकर उसी रात 12 बजे तक पूरी हो जाएगी।

जनगणना के बाद परिसीमन और अन्य प्रशासनिक फैसलों की दिशा तय की जाएगी।


एनपीआर को लेकर स्थिति अस्पष्ट

राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) को अपडेट करने को लेकर अब भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। हालांकि विशेषज्ञ मान रहे हैं कि डिजिटल जनगणना का यह प्रारूप एनपीआर के लिए आधार बन सकता है।


राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण

जातिगत जनगणना को लेकर वर्षों से राजनीतिक मांग रही है। विशेष रूप से पिछड़ा वर्ग और सामाजिक न्याय की बात करने वाले संगठनों ने इस पर ज़ोर दिया है। अब जब यह घोषणा हो चुकी है, तो इससे आने वाले चुनावों, आरक्षण और नीति निर्धारण में बड़ा बदलाव संभव है।


निष्कर्ष: जनगणना 2027 – डेटा का नया युग

जनगणना 2027 न केवल भारत की पहली डिजिटल जनगणना होगी, बल्कि यह सामाजिक संरचना की नई समझ भी प्रदान करेगी। जातिगत आंकड़ों का पुनः सार्वजनिक होना सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह न केवल एक आंकड़ों की प्रक्रिया है, बल्कि देश की आत्मा को समझने और नीतियों को नया आधार देने की पहल है।



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