लोकतंत्र पर ख़तरा। टेक कंपनियों पर कसता शिकंजा ,भारत में सोशल मीडिया और ऑनलाइन कंटेंट पर कंट्रोल से जुड़े नए नियम

Original Content Publisher  bebakmanch.com -  3 yrs ago

भारत में सोशल मीडिया और ऑनलाइन कंटेंट पर कंट्रोल से जुड़े नए नियमों की ख़ासी चर्चा हो रही है.

जहाँ एक तरफ़ सरकार इसे डिजिटल संप्रभुता का सवाल बता रही है, वहीं कई लोगों का कहना है कि ऐसे क़दम सरकारी जकड़बंदी को बढ़ाएँगे जो लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है.

लेकिन अगर ग़ौर से देखा जाए तो असल में दुनिया भर में ऐसे नियमों को लागू करने का रुझान बढ़ रहा है.

26 मई से लागू हुए सूचना प्रौद्योगिकी नियम 2021 से यूज़र्स की प्राइवेसी पर प्रहार और ट्विटर जैसी सोशल मीडिया कपंनियों के स्टाफ़ के ख़िलाफ़ आपराधिक मुकदमों का ख़तरा बढ़ गया है.

भारत में सोशल मीडिया कंपनियों को डर है कि उनका हाल इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर जैसा हो सकता है जिन पर प्रशासन जब चाहे अंकुश लगाता रहता है. किसी शहर या राज्य में कानून-व्यवस्था के तहत उठाए गए क़दमों में इंटरनेट सुविधाएं बंद करा देना भी शामिल हो गया है.

भारत के नए नियमों जैसे क़ानून पाकिस्तान और वियतनाम में पहले से ही मौजूद हैं. ब्राज़ील, पोलैंड, तुर्की और जर्मनी जैसे देशों में ऐसे क़ानून और नियम या तो पहले से ही लागू हैं या बनाए जा रहे हैं.

भारत में इन नियमों के मुताबिक़ सोशल मीडिया कंपनियों को एक मुख्य अनुपालन अधिकारी या चीफ़ कंप्लायंस ऑफ़िसर की नियुक्ति करनी होगी जो भारत में हो और भारत निवासी हो और वह व्यक्ति भारतीय क़ानूनों और नियमों के पालन को सुनिश्चित कराने के लिए जिम्मेदार होगा.

भारत-स्थित सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी के सीनियर रिसर्च गुरशबद ग्रोवर ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि इस तरह के दायित्व (स्थानीय कंप्लायंस अफसरों की नियुक्ति को अनिवार्य करना) विश्व भर में बढ़ता एक रुझान है. वो कहते हैं, "तुर्की और ब्राजील के अलावा, जर्मनी में भी एक कानून है जिसमें अधिकार क्षेत्र में एक लोकल स्टाफ की उपस्थिति अनिवार्य है."

लेकिन वो कहते हैं कि जिन देशों में क़ानून की क़दर है वहां टेक कंपनियों के अधिकारियों पर आपराधिक मुकदमों का जोखिम कभी नहीं डाला गया.

दूसरी तरफ़ कई विशेषज्ञों का कहना है कि जिन देशों में इंटरनेट की स्वतंत्रता पर प्रहार करने का इतिहास है, ऐसे ही कानूनों का इस्तेमाल सोशल मीडिया कंपनियों के स्टाफ को डराने या धमकाने के लिए किया जा सकता है.

'रेस्ट ऑफ़ वर्ल्ड' नाम के एक टेक न्यूज़ पोर्टल ने ऑनलाइन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने वाली संस्था 'ग्लोबल नेटवर्क इनिशिएटिव' के नीति निदेशक जेसन पाइलेमियर के हवाले से इन नियमों को "बंधक बनाने वाले कानून" की तरह बताया, क्योंकि अगर वो सरकार के आदेश को नहीं मानेंगे तो उनके लिए जेल जाने का ख़तरा है.

दुनिया के कुछ लोकतांत्रिक देशों में सोशल मीडिया के प्रति क्या नियम और क़ानून हैं?

अभी हाल तक कई पश्चिमी देशों में सोशल मीडिया के अपने बनाए हुए नियमों को ही काफ़ी समझा जा रहा था. लेकिन कई नेताओं और संस्थाओं ने इनके ख़िलाफ़ ये शिकायत करनी शुरू कर दी कि ये ज़रुरत से ज़्यादा प्रभावी और शक्तिशाली बनते जा रहे है और ये कि इन पर अंकुश लगाना ज़रूरी है.

भारत में डिजिटल मार्केटिंग रणनीति बनाने वाली एक कंपनी, आईक्यूबसवायर के संस्थापक साहिल चोपड़ा कहते हैं, "दुनिया भर के कई लोकतंत्रों में समान मुद्दे रहे हैं और कई मामलों में कुछ नियम बनाए गए हैं. पिछले साल दिसंबर में यूके ने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया था कि अगर टेक कंपनियाँ ब्रिटेन के कानूनों के तहत अवैध सामग्री के प्रसार को हटाने और सीमित करने में नाकाम रहती हैं तो फेसबुक, ट्विटर, टिकटॉक वगैरह को उनके टर्नओवर का 10 प्रतिशत तक जुर्माना भरना पड़ सकता है."

तुर्की में क्या है स्थिति

पिछले साल, तुर्की ने एक व्यापक कानून पारित किया जो बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को स्थानीय कार्यालय खोलने के लिए बाध्य करता है, 48 घंटों में सामग्री हटाने के अनुरोधों का जवाब देना अनिवार्य है. ट्विटर ने उस समय स्थानीय दफ़्तर खोला जब सरकार ने उस पर जुर्माना लगाया.

चिंता की बात ये है कि एक देश की सरकार दूसरे देश की सरकार से प्रेरित होकर सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने के लिए क़ानून बनती है. तुर्की के बारे में ये कहा जाता है कि उसने जर्मनी के 2017 क़ानून से प्रेरित होकर ये क़ानून बनाया था.

जर्मनी और यूरोपीय संघ

जर्मनी यूरोपीय संघ का सबसे प्रभावशाली देश है. उसने संघ के क़ानून के अलावा भी अपने क़ानून खुद बनाए हैं. जर्मनी ने 2017 में कुख्यात नेटवर्क इंफोर्स्मेंट लॉ कानून लागू किया, जिसमें कहा गया कि 20 लाख से अधिक पंजीकृत जर्मन यूज़र्स वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को कंटेंट पोस्ट किए जाने के 24 घंटों के भीतर अवैध सामग्री की समीक्षा करनी होगी और उसे हटाना होगा या 5 करोड़ यूरो तक का जुर्माना भरना होगा.

यूरोपीय आयोग वर्तमान में एक डिजिटल सेवा अधिनियम पैकेज के लिए एक बिल तैयार कर रहा है. इसकी तैयारी के सिलसिले में यूरोपीय संघ की संसद ने उन तीन संबंधित रिपोर्टों को मंज़ूरी दी है, जो यूजर्स की सामग्री के संबंध में प्लेटफार्मों की कानूनी जिम्मेदारियों से जुड़ी हैं, जिसमें यूजर्स को ऑनलाइन सुरक्षित रखने के उपाय शामिल हैं.

डिजिटल सेवाओं में ऑनलाइन सेवाओं की एक बड़ी श्रेणी शामिल है, जिनमें सोशल मीडिया भी है. इस बिल में बनाए गए नियम मुख्य रूप से ऑनलाइन इंटरमीडिएरीज़ और प्लेटफार्मों से संबंधित हैं. उदाहरण के लिए, सोशल नेटवर्क, कंटेंट-शेयरिंग प्लेटफॉर्म, ऐप स्टोर और ऑनलाइन ट्रैवल वगैरह.

अमेरिका में क्या हैं क़ानून

28 मई 2020 को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इंटरनेट कंपनियों की उस क़ानूनी ढाल को निशाना बनाने के लिए एक कार्यकारी आदेश (एग्जीक्यूटिव ऑर्डर) पर हस्ताक्षर किया जिसका सहारा लेकर ट्विटर जैसी सोशल मीडिया कंपनियां यूजर्स की सामग्री की ज़िम्मेदारी लेने से बचती हैं.

वह ट्विटर, यूट्यूब और फेसबुक जैसे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर लागू होता है. राष्ट्रपति ट्रंप ने एक लंबे समय से बिना सबूत के, ट्विटर और फेसबुक के ख़िलाफ़ दक्षिणपंथी या कंज़र्वेटिव विचारों को जान-बूझकर दबाने का आरोप लगाते रहे थे.

इस ऑर्डर को पारित करने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति ने ये ट्वीट किया: "सोशल मीडिया और निष्पक्षता के लिए यह एक बड़ा दिन होगा!"

ट्रंप ने हस्ताक्षर के दौरान कहा था, "ट्विटर जब संपादन, ब्लैकलिस्ट, शैडो बैन करने की भूमिका निभाता है, तो वो साफ़ तौर पर संपादकीय निर्णय होते हैं. ऐसे में ट्विटर एक निष्पक्ष सार्वजनिक प्लेटफार्म नहीं रह जाता और वे एक दृष्टिकोण के साथ संपादक बन जाते हैं. और मुझे लगता है कि हम दूसरों (सोशल मीडिया प्लेटफार्म) के बारे में भी ऐसा कह सकते हैं, चाहे आप गूगल को देख रहे हों, चाहे आप फेसबुक को."

ट्विटर ने अपने ट्विटर पब्लिक पॉलिसी हैंडल पर इस आदेश पर प्रतिक्रिया व्यक्त की: "यह कार्यकारी आदेश एक ऐतिहासिक कानून के लिए एक प्रतिक्रियावादी और राजनीतिक दृष्टिकोण है. #Section 230 अमेरिकी इनोवेशन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करता है, और यह लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित है. इसे एकतरफा रूप से मिटाने का प्रयास ऑनलाइन स्पीच और इंटरनेट स्वतंत्रता के भविष्य के लिए खतरा है."

अमेरिका में कई टेक्नोलॉजी पत्रिकाओं की संपादक रह चुकी टेलर हैटमेकर ने एक लेख में लिखा, "धारा 230 के बिना अमेरिका में और दुनिया भर में सोशल मीडिया कंपनियां कभी भी ऊंचे दर्जे की सेवाएं नहीं बन पाती". लेख में उन्होंने आगे लिखा, "राष्ट्रपति का आदेश कुछ तरीकों से सोशल मीडिया कंपनियों पर नियंत्रण रखने की कोशिश करता है. इस धारा के बिना ट्विटर या फेसबुक या यूट्यूब जैसी किसी भी कंपनी पर उसके यूजर्स की सामग्री-टिप्पणी वगैरह के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है."बहरहाल, ट्विटर और ट्रंप के बीच हुई जंग में शिकस्त आखिर में पद से हट रहे राष्ट्रपति की हुई. उनके ऑर्डर को बाद में वापस ले लिया गया. ट्विटर और फेसबुक ने उनके अकाउंट को बंद कर दिया.

ब्रिटेन में भी रेगुलेशन की व्यवस्था

ब्रितानी सरकार ने पिछले साल दिसंबर में मीडिया की रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़कॉम को सोशल मीडिया का भी रेगुलेटर नियुक्त किया. इस क़दम का मक़सद बच्चों, महिलाओं और मासूम नागरिकों को ऑनलाइन दुर्व्यवहार से बचाना बताया गया था.

इस फैसले के बाद ऑफकॉम ने, जिसकी निगरानी में बीबीसी भी आता है, एक बयान में कहा, ''इसका मतलब है कि हम बच्चों और कमजोर लोगों के ऑनलाइन होने पर उनकी सुरक्षा के लिए नई जिम्मेदारियां निभाएंगे और सुरक्षित रूप से ऑनलाइन होने के बड़े फ़ायदों का आनंद लेने के लिए सभी को अधिक आत्मविश्वास देंगे."

ब्रितानी सरकार इस साल एक 'ऑनलाइन सुरक्षा विधेयक' लेकर आने वाली है, जो ऑनलाइन दुर्व्यवहार के लिए नियामक ढांचा निर्धारित करेगा, बाद में इसे कानून बनने के लिए संसद से पारित करने की आवश्यकता होगी.

जब ऑफकॉम से ये पूछा गया कि क्या वो सोशल मीडिया को अब सेंसर करेगा तो उसने कहा, ''हम सोशल मीडिया या इंटरनेट को सेंसर नहीं करेंगे. अभिव्यक्ति की आज़ादी इंटरनेट की जान है और हमारा लोकतंत्र, हमारा आदर्श और हमारा आधुनिक समाज इसी पर टिका है".

ट्विटर, फेसबुक और गूगल सभी ने कहा है कि वो ऑफकॉम को अपना पूरा सहयोग देंगे.

ऑस्ट्रेलिया का हाल

ऑस्ट्रेलिया ने अप्रैल 2019 में शेयरिंग ऑफ एबोरेंट वायलेंट मटेरियल एक्ट पारित किया, जिसका उल्लंघन करने में सोशल मीडिया कंपनियों के लिए आपराधिक दंड, तकनीकी अधिकारियों के लिए तीन साल तक की संभावित जेल की सज़ा और कंपनी के वैश्विक कारोबार के 10 प्रतिशत तक जुर्माना शामिल है.

इसके अलावा चीन ट्विटर, गूगल और फेसबुक सहित कई पश्चिमी टेक दिग्गजों को ब्लॉक करता रहता है, और राजनीतिक रूप से संवेदनशील सामग्री के लिए चीनी सोशल मीडिया की निगरानी करता है. देश में कहने को ट्विटर पर प्रतिबंध है लेकिन चीनी सरकार से स्वीकृति मिले वीपीएन के ज़रिए लोग ट्विटर पर जाते हैं और ट्वीट करते हैं. खुद चीनी विदेश मंत्रालय भी ऐसे ही ट्वीट करता है.

हाल में नाइजीरिया ने एक विवाद के बाद ट्विटर को देश में प्रतिबंधित कर दिया है.

भारत में क़ानून का विरोध

भारत सरकार का कहना है कि नए नियमों का उद्देश्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और ओटीटी प्लेटफॉर्म के सामान्य यूजर्स की शिकायतों की सुनवाई करने वाले ऑफिसर की मदद से उनकी शिकायत के निवारण और समय पर समाधान के लिए सशक्त बनाना है. इस अधिकारी को भारत निवासी होना चाहिए. महिलाओं और बच्चों को यौन अपराधों, फ़ेक न्यूज़ और सोशल मीडिया के अन्य दुरुपयोग से बचाने पर विशेष ज़ोर दिया गया है. लेकिन कई लोग इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार मानते हैं.

सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी के गुरशबद ग्रोवर कहते हैं, "नए आईटी नियमों के कुछ ऐसे पहलू हैं जो सोशल मीडिया कंपनियों को इस बारे में अधिक पारदर्शी बना देंगे कि वे सामग्री को कैसे हटाते हैं, और जब वे अपने कम्युनिटी स्टैंडर्ड के आधार पर यूजर्स की पोस्ट हटाते हैं तो अधिक जवाबदेह होते हैं. लेकिन यह स्पष्ट रूप से सरकार का एकमात्र इरादा नहीं है, ऐसे नियम हैं जो स्पष्ट रूप से यूजर्स की गोपनीयता पर असर डालेंगे. इसकी एक मिसाल 'ट्रेसेबिलिटी' नियम है जो संचार गोपनीयता को अनिवार्य रूप से नुकसान पहुँचाएगा."

विशेषज्ञ साहिल चोपड़ा कहते हैं समस्या दोनों तरफ़ है. ''मेरी राय में सरकार इन विशाल कंपनियों को स्थानीय कानूनों का पालन करने और कुछ नियम लाने के लिए कहने के मामले में ठीक है. वर्तमान में पूरी तरह से अराजकता है और किसी भी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से कोई भी व्यक्ति अपनी राय दे रहा है जो कई मामलों में पहले से नियोजित होती हैं और फिर उनका पैसे देकर प्रचार किया जाता है. ये नियम कुछ मामलों में बोलने की स्वतंत्रता में बाधा डाल सकते हैं लेकिन वाइल्ड सोशल मीडिया की तुलना में कुछ संयम रखना बेहतर है."

गुरशबद ग्रोवर के विचार भारत सरकार और ट्विटर के बीच विवाद में एक बड़ा मुद्दा स्थानीय अफसरों की नियुक्ति का है.

सरकार और ट्विटर के बीच इस तनाव 

इनफ़ॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट या सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 2 (1) (डब्ल्यू) की परिभाषा के अनुसार, फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप और गूगल जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को इंटरमीडियरी माना गया है. इसकी धारा 79 के मुताबिक़ इंटरमीडिएरीज़ को इस शर्त पर सुरक्षा प्रदान की जाती है कि वे कुछ दायित्वों को पूरा करते हैं और नियमों के अनुसार काम करते हैं. जब ये इंटरमीडिएरीज़ अदालत या सरकारी आदेश का पालन नहीं करते हैं, तो वे प्रकाशक के रूप में कंटेंट के लिए जिम्मेदार हो जाते हैं, और सामग्री बनाने वाले के साथ उनके ख़िलाफ़ भी आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है.

सरकार से जुड़े लोगों की ओर से कहा जा रहा है कि ट्विटर ने नए आईटी नियमों का पालन करने में कथित नाकामी के कारण भारत में कानूनी सुरक्षा खो दी है. हालांकि भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से न तो इसकी पुष्टि की है और न ही इसका खंडन किया है.

अगर ट्विटर की इंटरमीडियरी हैसियत को सही मायने में हटा दिया गया है तो इसे अब उसे एक पब्लिशर माना जाएगा और किसी भी कानून के तहत सजा के लिए उत्तरदायी होना पड़ेगा.

ट्विटर सरकार के साथ दो मामलों में उलझा नज़र आता है. पहला मामला बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा के कांग्रेस पार्टी पर टूलकिट वाले एक ट्वीट पर 'मैनिपुलेटेड मीडिया' का टैग लगाने का है. बीजेपी ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है. इसकी जांच कर रही दिल्ली पुलिस ने ट्विटर के दफ्तरों का दौरा भी किया है और बाद में एक पार्लियामेंट्री समिति ने ट्विटर के अधिकारियों से पूछताछ भी की है.


उधर संबित पात्रा वाले विवादित ट्वीट को कई केंद्रीय मंत्रियों ने भी ट्वीट किया है. कांग्रेस ने ट्विटर से आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद सहित 11 केंद्रीय मंत्रियों के ट्वीट पर "मनिपुलेटेड मीडिया" का लेबल लगाने की मांग की है. कांग्रेस का कहना है कि इस ट्वीट में पार्टी के खिलाफ "झूठा और दुर्भावनापूर्ण प्रचार" किया गया है.

ट्विटर के विरुद्ध दूसरा मामला ग़ाज़ियाबाद के एक वीडियो को लेकर है जिसमें एक बूढ़े मुसलमान व्यक्ति के साथ कुछ लोगों को मारपीट करते और उनकी दाढ़ी काटते दिखाया गया है. गाज़ियाबाद पुलिस के मुताबिक़ ये सांप्रदायिक मामला नहीं था क्योंकि आक्रमणकारी व्यक्तियों में हिन्दू और मुसलमान दोनों शामिल थे.

पुलिस ने ट्विटर से इस वीडियो को हटाने को कहा और अब ट्विटर ने इस वीडियो को हटा दिया है. लेकिन पुलिस ने भारत में ट्विटर के वरिष्ठतम अधिकारी मनीष माहेश्वरी को पूछताछ करने को गुरुवार को थाने बुलाया है.

लगभग दो करोड़ यूज़र्स के साथ ट्विटर के लिए अमेरिका और जापान के बाद भारत सब से बड़ा मार्केट है. और भारत में ट्विटर के लिए ये संकट की घड़ी है.



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