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भारत में बहुसंख्यक जीवी पर अल्पसंख्यक परजीवी हावी क्यों ? -Sandeep SPTM

Original Content Publisher  bebakmanch.com -  3 yrs ago

संपादक संदीप एसपीटीएम की कलम से : जैसा कि हम सब जानते हैं कि हमारे भारत देश को विविधता में एकता का देश कहा जाता है, लेकिन सत्यता यह है कि जब आप किताबों से बाहर धरातल पर निकल कर देखेंगे तो हमारा भारत देश विभिन्नताओं में बटा हुआ है, जाति के नाम पर, धर्म के नाम पर, आर्थिक अवस्था के नाम पर, महिला पुरुष आदि के नाम पर । जब कुछ साथियों द्वारा इस पर गहन अध्ययन किया गया तो पाया गया कि देश सिर्फ दो तरह के लोगों की वजह से बटा हुआ है, एक जीवी और दूसरे परजीवी।

 जीवी का तात्पर्य उन लोगों से है जो कामकाजी होते हैं मेहनत कर, खेती कर, किसानी कर, उत्पादन आदि काम कर कमाते खाते हैं और अपने परिवार का जीवन चलाते हैं । जीवी समाज को आप कामकाजी समाज भी कह सकते हैं, और परजीवी उसे कहते हैं जो अपनी जीविका चलाने के लिए जीवी समाज का शोषण करता है पाखंड में फंसा कर, ईश्वर आदि का भय दिखाकर, अपने धन व शक्ति का दुरुपयोग कर अपना व अपने परिवार का जीविका चलाता है। ऐसे लोगों को परजीवी कहते हैं।

परजीवी समाज हमेशा जीवी समाज के अधिकारों का हनन कर खुद को स्थापित करता है। फिर भी खुद को उच्च कोटि का कहता है जबकि यही लोग निम्न कोटि  के होते हैं । जब तक भारत देश की बहुसंख्यक लगभग 90% जीवी समाज परजीवियों को नहीं पहचानेगा देश का विकास संभव नहीं है । परजीवी हर जाति और धर्म में पाए जाते हैं वह किसी भी जाति के हो सकते हैं किसी भी धर्म के हो सकते है। पूरी खबर पढ़ने के लिए नीचे वेबसाइट पर पढ़ें पे क्लिक करें

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